हिन्दू धर्म के अनुसार पितृपक्ष के दिनों की पंचमी का विशेष मानी जाती है इस तिथि पर अविवाहित पितरों का श्राद्ध किया जाता है इसलिए इसे कुंवारा पंचमी भी कहते हैं|
जिन लोगों की मृत्यु अविवाहित रहते हुए हो जाती है उन पितरों का श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान पितृपक्ष के पांचवे दिन किया जाता है| कुंवारा पंचमी 11 सितम्बर को है| श्राद्ध की विधि समय अनुसार की जाती है|
कुंवारा पंचमी पर श्राद्ध का समय
कुतुप मुहूर्त – सुबह 11:53 – दोपहर 12:42
रौहिण मुहूर्त – दोपहर 12:42 – 1:32
अपराह्न काल – दोपहर 01:32- 04:02
कुंवारा पंचमी तर्पण का क्या है महत्व
पितृ पक्ष में की जाने वाली कुंवारा पंचमी का अलग महत्व दिया गया है| ऐसा माना जाता है कि कुंवारा पंचमी पर अविवाहित पितरों का श्राद्ध न करने से परिवार के लोगों को संतान न होना, कलह, बीमारी , अपयश, अकाल मृत्यु , विवाह समय पर न होना जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है जिसे पितृदोष भी माना जाता है| धर्मिक मान्यताओं के अनुसार कलयुग में मनुष्यों की आयु सौ वर्ष निर्धारित है लेकिन आज- कल लोगों की उम्र कम हो गई है| इसलिए कहा जाता है कि कुंवारे लोगों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण , पिंड दान अवश्य करना चाहिए|
कुंवारा पंचमी श्राद्ध की क्या है विधि
- 5 ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रण दें और एक कुंवारा ब्राह्मण जरुर शामिल करें|
- स्नान करके शुद्ध, साफ और स्वेत कपड़े धारण करें|
- गंगाजल, तिल, जौ, कच्चा दूध,और शहद आदि से विधिवत पितृगणों का पूजन करें|
- पितरों को फूल, चंदन आदि अर्पित करें और फिर भोग अर्पित करें|
- पितरों को फूल, चंदन आदि अर्पित करें और फिर भोग अर्पित करें|
- उसके बाद दान करें दान में आप अन्न, वस्त्र, धातु इत्यादि दे सकते हैं|
दान आप अपनी इच्छा और क्षमता के अनुसार कर सकते हैं| इससे आपके पितृ खुश होते हैं | हमें अपने पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए क्योंकि उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितृदोष भी दूर होता है जिससे घर में सुख और खुशहाली बनी रहती है|
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